09-Apr-2017 02:44 AM
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1975 साल के सितम्बर महीने से 1977 साल के दिसम्बर महीने तक, आयोवा सिटी, अमरीका में इण्टरनेशनल रायटिंग प्रोग्राम के सौजन्य से मेरा रहना हुआ। 1975, 1976, और 1977 की बर्फ़ को इस आवास में अनुभव किया। 1980 साल में सोवियत यूनियन और हंगारी में जाड़ा और बसन्त अनुभव किया। मराठी भाषा की परिधि के बाहर की कक्षा में अँग्रेज़ी@मराठी कविताएँ लिखीं। उनमें से मराठी कविताओं को ‘बफऱ् के दिन’ यह नाम दिया है।
1.
330 मेफ़्लाॅवर अपार्टमेण्ट्स, सितम्बर 1975
जब वह यहाँ अकेला ही होता है
सोने के दो कमरों के बावजूद
आधी रात रसोईघर में
मांस काटने की छुरियाँ ताकते
घण्टों बैठा होता है
बीच में ही दौरा पड़े के समान
जूठी तश्तरी धो देता है,
फिर से शराब का गिलास भरता है
या गांजे का पाइप सुलगाता है
नींद नहीं आती इसलिए वह तेज़ी से
गुसलखाने में जाकर वहाँ की दोनों बत्तियाँ जलाता है
तेज़ चमकते आईने में
अपना ही अनजाना चेहरा देखता है
शरीर के सारे कपड़े उतारता है
टब के, सिंक के सारे नल खोलता है
भरपूर बहता पानी देख
आत्महत्या का विचार करता है
आत्मसम्भोग पर समझौता करता है
कभी वह आधीरात के बाद धुलाई मशीन में
मैले कपडे़ और डिटरजेण्ट की पुडि़या डालता है
क्वाटर्स और डाईम्स गिनकर बटन दबाता है
लिफ़्ट से नीचे लाउंज में जाता है
वहाँ सिगरेट की, खाने की, काॅफ़ी की मशीनें
चमक रही होती है या पिनबाॅल मशीनें
और भूखे, अकेले स्त्री-पुरुष भटक रहे होते हैं
संकोची पशुओं के समान सुसंस्कृत अरण्य में
वह स्विमिंग पूल जाकर आधी नंगी लड़कियाँ ताकता है
या बेशरमी से सम्भोग के मनसूबे रचता है
जब वह अकेला नहीं होता यहाँ उसके आधी उम्र की एक हडि़यल लड़की
उसके साथ सोने आती है,
उसकी उग्र मर्दानगी से वह उन्मत्त होती है
रातभर बार बार उसके शरीर के नीचे खपती है
कई बार दोपहरभर वहीं सोयी रहती है
उसके झल्लाने पर टैक्सी मँगवाकर निकल जाती है
फिर वह एक भाषा से दूसरी भाषा में जाता है
बीच की शान्ति में रसोईघर होता है
और टेबल पर मांस काटने की छुरियाँ, कविताओं की किताबें।
2.
शिकागो, फरवरी 1976
‘लूप’ के स्टेशन पर उतर कर
अचानक मुख्य मार्ग पर आओ तो
ढेरों गिरती बफऱ्
हवा के थपेड़े, छिटपुट लोग
आश्रय में खड़े और इर्दगिर्द की
गगनचुम्बी इमारतों की प्रचण्ड दीवारें
मिशिगन एवेन्यू की सजीली दुकानें
शान्त सरोवर के किनारे की ड्राइव
चुप रडोल्फ गली आज रविवार।
यहाँ सिफऱ् हवा की सायँ-सायँ आवाज़,
और मोटरों के गिने चुने फ़र्राटे
बाकी का शहर इतना शान्त कि
ढहती बर्फ़ दे रही है सुनायी।
शिकागो की इमारतें, बफऱ् की चोटी
और खड़ी चट्टानें। शिकागो एक निर्जीव ग्रह पर
उत्खनन में खोद कर निकाला हुआ शहर।
यहाँ अल कॅम्पोनो नामक सम्राट
राज करता था। यहाँ मेयर डेली नाम का
नगर अध्यक्ष शासन करता था। यहाँ काले लोगों की
गोरों से लड़ाईयाँ होती थी फलाँ सदी में।
आज मैं अकेला ही खड़ा हूँ इस निर्जन तूफ़ान में।
यहाँ संग्रहालय था विज्ञान और उद्योगों का
और कला संस्थान, जहाँ
फ्राँसीसी प्रभाववादी नामक चित्रकारों के
कई चित्र लगाये गये थे। यहाँ की
एक इमारत के सामने पिकासो नामक
व्यक्ति का एक विशाल शिल्प था।
यहाँ एक हाईड पार्क नामक मैदान और
उद्यान था, एक विश्वविद्यालय था।
अब वह सब बफऱ् में गुम हो गया है।
सिफऱ् एक पराया आदमी यहाँ खड़ा है
अब, इस बफऱ्ीली खलबली में हड़बड़ाकर
और ठिठुरकर। एक ओर उत्खनन देखता
और दूसरी ओर आकाश से गिरती बफऱ् की
बारिश से खुद का बचाव भी करना न जानता हुआ।
एक और शिकागो शहर, जो रचा गया
अप्रैल महीने की गर्म धूप में
पिघलती बफऱ् से जो प्रकट हुआ
विशाल और स्पष्ट, कठिन और भनभनाता
वह भी मुझे कभी देखा हुआ धुँधला-सा याद है।
या फिर वह व्यक्ति भी कोई दूसरा हो सकता है।
3.
बाहर का जगत मेरे द्वारा प्रवाहित होता है भाषा में
बाहर का जगत मेरे द्वारा प्रवाहित होता है भाषा में
इस बीच किसी समय उच्चारित शब्दों के अक्षर बन जाते है
और सपाट काग़ज़ पर ठहर जाती है काली सघन लिपि
उसके बाद मेरा कोई भी प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं रहता कविता से
सपाट कागज़ पर फिरती हैं मनुष्यों की आँखें
काली सघन लिपि में दोबारा आता है एक अलग ही वेग
अक्षरों के शब्द बनकर दोबारा होता है उनका उच्चार
तब समूची भाषा ही प्रवाहित हो जाती है
आन्तरिक जगत में
वह आन्तरिक जगत मेरा नहीं, उनका भी नहीं
अनेक आन्तरिक जगत मिलकर बना है वह जगत
जिस जगत के बाहर हम में से कोई भी जा नहीं सकता
और जिसमें हम अकेले ही विचरते हैं उदास
अगम्य पाशविक अंग में कैद रहता है जैसे
उतने ही दुर्बोध आत्मा का अदम्य प्रकाश
4.
यह साली आदत
यह साली आदत
इंसानों से उलझने की
अब तक गयी नहीं
बिल ब्राउन का विशाल तन
पालतू जानवरों जैसा
शहर के बाहर छोड़ा तब भी
चुपचाप आता है मेरे दरवाज़े पर
जिसे पत्नी ने त्यागा
जिसे मित्रों ने लताड़ा
जिसकी जगहँसाई हुई
जिसका उधार बन्द हुआ
वह यकीनन मेरे पास आकर
बेपरवाह फूट-फूट कर रोता है
यह साली आदत
इंसानों से उलझने की
अब तक गयी नहीं
बार में जाकर बैठा
तो जान-बूझकर कोई बेवड़ा
या बेवड़ी
मेरे ही कान्धे पर रोएँगे
प्रेमभंग हुई औरतें
परित्यक्त औरतें
क़ैद से छूटे गुनहगार
हर तरह के बेकार
मुझे ही टोकेंगे
यह साली आदत
इंसानों से उलझने की
मेरी जान ले लेगी
आँखें जो कठोर हो न सकीं चालीस साल
छाया देनेवाले वृक्ष के समान
सहती है सिफऱ् आश्रितों के दुःख
और उनकी जड़ें, जो दिखती नहीं,
ढूँढती है मिट्टी में आदर्श
यह साली आदत
जाती ही नही
5.
प्रेअरी से आ रही सर्द हवाओं
प्रेअरी से आ रही सर्द हवाओं
दक्षिण की ओर उड़ रहे पक्षी-दलों
पतझड़ की अन्तिम धुँधली पत्तियों
अतल में ताकते स्तब्ध नेत्रों
इस धीमी नदी के पात्र में प्रज्वलित
निष्पर्ण वृक्षों के तीव्र प्रतिबिम्बों
यह तुम्हारे ही है
पूर्णतः काले सघन शब्द
सिर में उग आये सफ़ेद बाल-सी
ये पंक्तियाँ उग आयी हैं
चहेरे पर उभरती झुर्रियाँ जैसे
इन पदों में तुम्हारी रेखा
उभर रही है
एक अत्यन्त अपरिचित देश के
अत्यन्त परिचित गाँव में
एक अत्यन्त एकाकी व्यक्ति
जो अकेला मात्र नहीं
जिसकी प्रेमिका भिन्न है
परन्तु प्रेम मात्र पुरातन
उसके फेफड़ों के अकाॅर्डियन पर
तुम्हारे ही सुर हैं
6.
पहले जूते निकले
पहले जूते निकले
फिर ओवरकोट कुर्सी पर गिरा
पीछे स्वेटर, स्कर्ट, टाॅप, स्टाॅकिंग्स
ब्रेसियर और अण्डरवियर
एक ही ढेर
समस्त कर्मकाण्डों का
ऊनी, सूती, चमड़ा, नायलाॅन
स्वाधीन कर बाकी मन और समूचा शरीर
तुम चली गयीं दोबारा बफऱ् में भटकने
निशानी भर के लिए
गहरे, गर्म, तेज़ होते श्वास मेरे पास छोड़कर
उस बफऱ्ीली दोपहर
खिड़की के बाहर सब कुछ श्वेत था
यातायात लगभग बन्द पड़ा था
मैंने हाल ही में सैंतीसवे वर्ष में
प्रवेश किया था
अपनी आँखें मात्र तुमने बन्द रखी थीं
अपना शरीर खोलने के समय से
मेरे कराहते हुए सीधे अन्दर गिरने तक
कितना एकाकी, कितना दूर, कितना उत्कट
कितना अनाथ हो गया था मैं
मुझे लगता है मेरे केश तब ही
पहले पहल सफ़ेद हुए
सर्दियों जैसे एकान्त मैथुन में
लुप्त हो कर मैं अकेला ही बाहर आया जब
7.
ग्रेहाउण्ड बस की खिड़की से
आयोवा के मैदानों पर
बफऱ् की परतें फैली है
नेब्रास्का के वीरान मैदान
अँधेरे में भागते फिर रहे है
और वायोमिंग भी पीछे छूट गया
वेस्टर्न फि़ल्म का डिसाॅल्व
धुँधला-धुँधला होता जाये जैसे
बाद में यूटा साल्ट लेक सिटी में
माॅरमाॅन लोगों के मन्दिर का चक्कर लगाकर
नेवादा के रेगिस्तान में अँधेरे से
अचानक कोई तेज-पुंज गरज़ते हुए आये
वैसे लाॅस वेगास आया चमचमाते हुए
सवेरा हुआ तब कैलिफोर्निया की घाटी में
बस सुस्ती से मुड़ रही थी
ग्रेहाउण्ड बस की खिड़की से बाहर की गन्ध नहीं आती
इसीलिए काफ़ी देर तक पैसिफि़क का नीला पट्टा
मैं आँखों से ही ढूँढ़ता रहा
जब पैसिफिक वास्तव में देखा,
वह गहरा हरा था
और पश्चिम दिशा पृथ्वी मात्र के लिए
शान्ति में विलीन हो गयी थी
8.
एक लड़की के भूखे कन्धे पकड़
1.
एक लड़की के भूखे कन्धे पकड़कर
कुछ वर्षों पहले मैं खड़ा हूँ हाॅल में
पत्तियाँ झरे मन के वृक्ष समान
एक निस्तब्ध अपार्टमेण्ट के बेडरूम में
गर्म मोम जैसे उसके हाथ रिसते है मेरी पीठ पर
वह ढूँढ़ रही है मेरे शरीर में प्रेम का चिह्न, एक हक़
मैं चीटियों के टीले-सा खोखला खड़ा हूँ
न ढहने वाले ढेर-सा
सारे शरीर पर लगी हैं चीटियों की कतार
आकांक्षा के क्षण जमा हो रहे है
एक भूमिगत प्रकोष्ठ में
हे मेरी कृश और अधीर प्रेमिका
कहाँ रखँू मैं तुम्हें
इस अत्यन्त क्षणिक और उत्कट समय में ?
नौ हज़ार मीलों पर, जिन्हें पत्थर नहीं
जिनकी सोयी हुई पीठ पर हैं सिफऱ्
अक्षांश और रेखांश के स्थायी निशान
नौ हजार मीलों पर मैं अब सो गया हूँ
और सोता ही रहूँगा वह वर्ष समाप्त होने तक
2.
एक लड़की के भूखे कन्धे पकड़कर
उसके टूटे हुए प्रेम के मैंने टुकड़े जमा किये
और उसके मन के बाहर फेंक दिये
अपने प्रेमी के झूठे आश्वासन याद कर
वह रोयी मेरे कन्धे पर
अत्यन्त शिथिल शरीर से, फिर
वह सो गयी मेरे पास
मुझसे खेलकर, थकी हारी, सुखी
वह मेरी बेटी भी हो सकती थी
अत्यन्त निकट सदा परायी
वह मेरी प्रेमिका भी हो सकती थी
पास हो कर भी असह्य अपरिचित
वह मेरी रक्षिता भी हो सकती थी
अधिकार-सम्पन्न पर हक़ के बिना
वह मेरी सखी भी हो सकती थी
मुझसे भी ज़्यादा मेरे जैसी
पर पे शिआँन इनमें से कोई नहीं थी
जब दिन-सा मैं उसपर आया
और रात-सी वह लोप हो गयी
9.
जहाँ के सूर्यास्त तेज़
जहाँ के सूर्यास्त तेज और
जहाँ अँधेरा अचानक होता है
हम ऐसी जगह आ पहँुचे थे
पतझड़ का प्रखर आवेश खत्म हो
हवा में कँपकँपी भर रही थी
नामालूम बफऱ् पड़नी शुरू हो गयी थी
सूज गये एकान्त में
अपने कमरों में हम बैठे रहे
खिड़की के बाहर दूर तक उजाड़ पड़ा अरण्य
और पेड़ों के काले घने कंकालों के नीचे
बर्फ़ की ढलान और उठान दीखती थी
टाइपराइटर, स्टीरियो,
टीवी, एफएम-एएम, रेडियो टेप रिकाॅर्डर्स,
गिटार, पियानो, ड्रम्स, सेक्सोफोन, ट्रम्पेट,
चेलो, सब को बेअसर करने वाली वह
अत्यन्त उबाऊ, होंठ दबाये राह
तकने की ऋतु शुरू हो गयी थी ।
दिन छोटे, रातें लम्बी होती गयी थीं
वह जगह जगह ही नहीं थी
वह समय समय ही नहीं था
10.
1110 नाॅर्थ ड्यूब्युक स्ट्रीट
इस पते पर जब-जब पहुँचता हूँ
नींद में चलते व्यक्ति के समान मेरी आँखें
खुली और अत्यन्त स्थिर होती हैं
पतझड़ का मौसम शुरु हुआ होता है
सिल्वर मेपल, बर ओक, कितने ही रंगों की पत्तियाँ
उछलकर गिरती रहती हैं चुपचाप
और हवा सुलगकर निश्चल होती है बार-बार
लाऊंज में टीवी पर वाॅल्टर क्राॅकाइट
समाचार दे रहा है
एक लम्बी ब्राजीलियायी लड़की की शर्ट के
स्तनों के निकट खुले पड़े बटन से
कालीन पर लुढ़कती अमरीकन लड़की की
जाँघें देख कर न भी देखता हुआ मैं दाँयी ओर मुड़ता हूँ
पूल टेबल पर दडि़यल काला आदमी
दाँत दिखता है, पिन-बाॅल मशीन बज रही होती है
मेरा यूनानी मित्र तासोस देनिग्रीस
चरस का कश लेते लेते ग़ायब हो जाता है
मेरी चीनी प्रेमिका पे शिअँन लियाँग
बेडरूम में निर्वस्त्र हो रही होती है
नींद में चलते व्यक्ति समान के मेरी आँखें
खुली और बहुत स्थिर होती हैं
पतझड़ का मौसम देखते देखते खत्म हुआ जाता है
मेरी टोपी पर बफऱ् गिरी होती है
इस पते पर जब जब मैं अचूक पहुँचता हूँ
11.
सर्दियाँ
पहले उसके नंगें और भूखे कन्धों की बफऱ्
चमकी टहनियों पर
इकहरे निष्पर्ण वृक्षों के बीच वह खड़ी थी
वृक्षों जितनी ही अनावृत और निष्काम
इस विशाल बफऱ्ीले मैदान में
मैं कहाँ तक भागता जाऊँ ?
जमी हुई नदी के परे
विलुप्त हुए परिदृश्य में ?
यह सपनों के परे की सर्दी
आत्महत्या जैसी गहरी
और मन के तले
पुराने अनुभवों से भी उजाड़
यह मृत्यु जैसी दुबली
रिक्त नेत्रों वाली लड़की
बफऱ् में नंगी खड़ी है
हवा में काँपे बिना
मेरे हर श्वास के साथ
मस्तिष्क के फूल
अदृश्य हो रहे हैं अब
इस बर्फीले विस्तार में
विश्व के विस्तार पर
बढ़ती जा रही है राख की परत
विस्मरण की शुभ्र धवल घास में
मैं भागता जा रहा हूँ
12.
कहाँ दहक रही हैं ये नदियाँ ?
कहाँ दहक रही है ये नदियाँ ?
कहाँ लुप्त हो रहे है ये वन ?
और यह सफ़ेद ढेर
किस विश्व का है ?
पत्थर-कोयलों से
किस अनादि वन का
जीवित कोलाहल
फिर से हरा-भरा हो रहा है ?
कहाँ प्रज्वलित हैं हिम शिखर ?
कहाँ फैल रही हंै चट्टानें ?
किसी पुकार की तरह
दूर दूर तक
कहाँ फैलता जा रहा है आकाश ?
और इन सब के इर्द गिर्द
पहचाना-सा गुम्बद दिख रहा है
वह पहले पहल
कहाँ देखा था ?
या मेरी सारी स्मृति
उस गुम्बद में
गूँजते-गूँजते शान्त हो जाएगी?
कहाँ दहक रही हैं ये नदियाँ ?
13.
एक शुभ्र धवल गाँव में
एक शुभ्र धवल गाँव में
एक शुभ्र धवल रात्रि में
सोया हुए खरगोश को
मैंने उठा लिया
एक शुभ्र धवल पथ पर
शुभ्र धवल कदमों से चलता गया
मेरे गर्म कोट में
खरगोश सुरक्षित था
उसका काला सघन हृदय
मेरे काले सघन हृदय के साथ
धड़क रहा था
वह शुभ्र धवल मील
वह शुभ्र धवल मील
ध्वनि कोई भी नहीं
ध्वनि कोई भी नहीं
सिफऱ् वह मूक जीव
गर्माहट में गहरा सोया
और मैं श्वेत
सर्वस्व के परे चल रहा हूँ
खरगोश ने आँखें खोली
तब मेरे केश शुभ्र धवल हो गये
और शुरू हो गया
वसन्त
14.
उस बफऱ् जैसे चमकीले प्रकाश में
धीरे धीरे सफ़ेद होते गये मेरे केश
पलकों के खुलने बन्द होने के साथ
होता रहा हिमपात
उस दूर के अक्षांश के परे
खत्म हो गयी थी मेरी भाषा
उस शीत परिदृश्य में
मिट गयी पुनर्जन्म की रेखाएँ
बचा खुचा जन्म
है एक पंक्ति का मुखड़ा
जिसमें पड़ेंगे गाँव
स्मृतियों के उजाड़
जीता जागता शरीर
शिलालेख के समान
स्वयं के अक्षरों से
वंचित हुआ है
15.
जहाँ सफ़ेद घोड़े रोज़ चरने आते हैं
जहाँ सफ़ेद घोड़े रोज़ चरने आते हैं
मुझे अब वहाँ जाना चाहिए
पर वह जगह शायद दक्षिण अमरीका में
कहीं तो है अवश्य
भरी दोपहर में, रात अँधेरी चाँदनी में
कभी भी ये घोड़े निर्भय चरते रहते हैं
भूमि मात्र पर उनकी परछाईयाँ नहीं गिरतीं
शायद वह जगह बहुत निकट भी होगी
कारण, वहाँ का प्रत्येक वृक्ष प्रत्येक पत्थर
मैं पहचानता हूँ
वहाँ की भूमि मात्र पर
मेरी भी परछाई कभी गिरती नहीं थी
जहाँ सफे़द घोड़े रोज़ चरने आते हैं
काले सघन प्रकाश में
16.
मास्को 1980
क्रान्ति के छायाचित्रित शहर में
तिरसठ साल बाद मेरे प्रवासी मन पर
गिर पाता नहीं तेजाब का एक छींटा
भूसा भरा निद्रामग्न क्रान्तिकारी
दर्शन के लिए कतार लगाये हज़ारों श्रद्धालु
लाल चैक में मुझे दिख रहा है सिद्धिविनायक
क्रेमलिन के ताबूत और लाल सितारा
कोरस गाते देवदूत ज़ार और काॅमिसार
उजाड़ चर्च के पास खड़ी मूक बूढ़ी औरतें
गोभी का दाम क्या, कविता की कीमत क्या
हृदय पर लिपटा कंटीला तार
वायोलिन समझ बजाता क्या
यह शक्तिशाली और भोला
व्यक्तियों का समुदाय
17.
मास्को - लेनिनग्रादः अप्रैल 1980
बफऱ् के गिरने पर भी पसीना छूट रहा था
प्लेटफार्म पर आधा मील सूटकेसों को खींचते हुए
फिर डिब्बे में जाकर सामान डाल
एक अद्धा वोदका खड़ी लगा ली
गाड़ी अपने आप ही शुरू हो गयी
वे बफऱ्ीले मैदान में दौड़ती पटरियाँ
वे खिड़की के परे के पेड़ों के कंकाल
और वह बता रही थी अपनी यादें
युद्धकाल का बचपन, भारत में पढाई
पुरुष, पति, पुस्तकें, पाँव, पलंग, लिंग
बत्ती बुझा हम धड़धड़ाती गाड़ी में
एक दूसरे के निकट चादर तले विच्छिन्न
नग्न शान्ति मे परस्पर समानान्तर
चुपचाप लहुलुहान
18.
तिब्लीसी
शायद इन्हीं पहाड़ों-दर्रों मे थी
प्रकाश के चोगे उठाती परियाँ
इन्द्रनील रंग की चोलियाँ
और तेज़ चाँदनी जैसे घोडे़
अंगूरों की मादक महक
और बादामों की शुभ्र बहारें
तुफ़ानों में
19.
स्तालिन के लगाये झूमर तले
स्तालिन के लगाये झूमर तले
पाव रोटी लेने वालों की भीड़
और दूर खडे़ ईसा मसीह के
तटस्थ दयालु मन्दिर
इस रूसी बफऱ् के नीचे होंगे
कितने ही कविताओं के फूल के पौधे
कई कंटीले एकान्त
बीत गये प्रजाजनों की हड्डियाँ
20.
अब कोई भी लेता नही उनका नाम
अब कोई भी लेता नहीं उनका नाम
पर मास्को पर फैली है स्तालिन की ही धुन्ध
लुबियाँका के सामने डिपार्टमेण्टल स्टोर है
छोटे बच्चों का
21.
लेनिनग्राद के रास्तों पर
लेनिनग्राद के रास्तों पर
नहरें और पुल
पेत्रोग्राद
सेण्ट पीटर्सबर्ग
राजप्रासाद के सामने के चैक में
अदृश्य खून की नदियाँ
बर्फ़ की-सी जमीं चीख
भूतप्रेतों-सी गोलीबारी
यहाँ से भी सीधे जा सकते हैं सायबेरिया
पर इन फुटपाथों से दोस्तोयेव्हस्की गया चलकर
और इन नहरों पर के पुलों से
पतझड़ में गल गयी
मान्देलश्ताम की परछाईयाँ
गर्मियों में यहाँ की रातें
सफ़ेद शुभ्र होती हैं
उल्टी बर्फ़ के जैसी
नीचे से ऊपर देखती हुई
22.
हंगारी यांचो, बारटाॅक और मैं
पत्थर से टकराकर बिखरता पानी
घास बिखेर जाती हवा
घोड़े हिनहिनाते बचे हुए सूर्यास्त में
नग्न कुमारियाँ लगाती मकई के फेरे
संक्रमण काल का मृदु आकाश
त्वचा पर उभरते तराशे हुए नक्षत्र
पीला होता जाता मनोगत
अँधेरे पर अधिकार जमाता चन्द्रमा का बीज
यह तीखी बू, यह सौम्य गन्ध, यह स्पष्ट सुगन्ध
आती है जिस रिसाव के पहले, वह रिसाव शुरू हो रहा है
वे नग्न कुमारियाँ अब सूर्यास्त के विपरीत
झुकी है क्षितिज पर स्तन टिकाये
23.
न्यूड
अँधेरी आवाज़ में मैंने उसे कहा,
‘यह शायद हमारी अन्तिम भेंट’
अगला क्षण था प्रचण्ड पहाड़।
खिड़कियों के परदे भी सरकाये नहीं थे
शीशे से नज़र आ रहे थे पार्क के पेड़
और आकाश के जेट के पट्टे
अगला क्षण पहाड़ जैसा
थमा ही रहा मन में।
ज़मीन के नीली कालीन पर
उसका नग्न उत्तान शरीर
सदैव वैसा ही रहा।
उसकी मुझ पर गड़ी आँखें
अगले सभी वर्षो के स्वप्नों को खोखला करते हुए
आरपार देखती रहीं।
मै पास गया।
उसके हाथ मेरी पीठ के गिर्द कस गये।
मै ऊपर चढ़ते चढ़ते नीचे नीचे गिरता रहा।
अगला क्षण पहाड़ जैसा था प्रचण्ड।
एक टेलीफोन की घण्टी निरन्तर बज रही है अब तक
जिसे सुनकर मैं नींद में चैंक कर जाग जाता हूँ
और रिसीवर की जगह कुछ भी नहीं होता अब।
24.
पतझर
मेरी हथेली पर पड़ता सूर्यास्त का चिन्ह
समस्त वृक्षों की पत्तियाँ चरता कोमल तेजाब
शिशिर के साँझ प्रकाश का
मिटा देता तीव्र रेखा
अब मैं इतना खोखला हो गया हूँ
बाँसुरी के छिद्र पड़े अपने तन पर
बस हवा का चलना बाकी है
पतझड़ परे का संगीत सुनायी देने में
और तुम मात्र अपलक यहाँ, नदी किनारे
पानी में गहरे सोये शैवाल की तरह
आकाश का प्रतिबिम्ब ओढ़े
मौसम की आंच में नहीं
फिर भी उसकी ही गिरफ़्त में